बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 संस्कृत : संस्कृत गद्य साहित्य, अनुवाद एवं संगणक अनुप्रयोग बीए सेमेस्टर-2 संस्कृत : संस्कृत गद्य साहित्य, अनुवाद एवं संगणक अनुप्रयोगसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 संस्कृत - संस्कृत गद्य साहित्य, अनुवाद एवं संगणक अनुप्रयोग - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 1
गद्य साहित्य का उद्भव एवं विकास :
प्रमुख साहित्यकार-बाणभट्ट दण्डी,
सुबन्धु शूद्रक, अम्बिकादत्तव्यास,
पण्डिता क्षमाराव
विश्व का प्रथम लिखित साहित्य वेद है जो ऋग्वेद से प्रारम्भ होता है। ऋग्वेद से पूर्व यदि कोई साहित्य रहा होगा तो उसका कोई साक्ष्य हमारे पास नहीं है।
अतएव संस्कृत साहित्य को दो भागों में बांटा जा सकता है -
1. वैदिक संस्कृत - 'वैदिक' शब्द से वेद बिषयक बहुविध सामग्री अर्थात् ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद का बोध होता है जो मन्त्र संहिताओं से भिन्न है किन्तु उनके साथ इनका अटूट सम्बन्ध है। चारों वेदों के अपने-अपने ब्राह्मण आरण्यक और उपनिषद हैं। यही वैदिक साहित्य के ग्रन्थ हैं। षड्वेदाङ्ग भी सम्बन्ध की दृष्टि से वैदिक साहित्य के अन्तर्गत आ जाते हैं। वैदिक युग को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
(i) पूर्व वैदिक युग - इसमें केवल वेद की चार संहितायें हैं।
(ii) उत्तर वैदिक युग - इसमें ब्राह्मण ग्रन्थों से लेकर षड्वेदाङ्गो तक का साहित्य रखा जा सकता है।
2. लौकिक संस्कृत - लौकिक संस्कृत साहित्य के अन्तर्गत रामायण, महाभारत, पुराण, कथा, व्याकरण, अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, नाट्यशास्त्र, शिलालेख एवं प्रशस्तियाँ हैं। लौकिक साहित्य को हम तीन रूपों में रखकर समझ सकते हैं।
(i) पौराणिक - पौराणिक ग्रन्थों जैसे- रामायण, महाभारत और पुराण को रखा जा सकता है। ये पौराणिक ग्रन्थ ही परवर्ती काव्यों और रूपकों के लिए उपजीव्य ग्रन्थ हो गए। ये पौराणिक ग्रन्थ हिन्दू धर्म एवं संस्कृति के पोषक हैं । इन्हीं ग्रन्थों के अनुशीलन से अनेक कवियों को काव्यप्रणयन की प्रेरणा प्राप्त हुई है।
(ii) शास्त्रीय - शास्त्रीय साहित्य के अन्तर्गत व्याकरण, अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, शिलालेख, प्रशस्तियाँ आदि हैं। जिसमें आचार्य पाणिनी का व्याकरणशास्त्र का 'अष्टाध्यायी', कौटिल्य का अर्थशास्त्र, गुणाढ्य का नीतिग्रन्थ 'बृहत्कथा', सोमदेव का 'कथासरित्सागर' क्षेमेन्द्र का बृहत् कथा मञ्जरी आदि हैं।
दर्शनशास्त्र में अनेक ग्रन्थ लिखे गये हैं। भारतीय दर्शनशास्त्र सिर्फ षड्दर्शन (सांख्य, न्याय, वेदान्त, योग, मीमांसा वैशेषिक) हैं। इसके अतिरिक्त जैन और बौद्ध दर्शन हैं। चार्वाक आदि दर्शन जो भारतीय संस्कृति द्वारा अमान्य हैं।
शिलालेख व प्रशस्तियाँ भी शास्त्रीय संस्कृत साहित्य के अन्तर्गत लिखी गईं।
(iii) साहित्यिक - सम्पूर्ण साहित्य को दो रूपों में रखा गया-
(i) श्रव्य काव्य - श्रव्य काव्य को तीन भागों में विभाजित किया गया-
(i) गद्य
(ii) पद्य
(iii) चम्पू
गद्य को दो रूपों मे रखा गया कथा ( कविकल्पित इतिवृत्त) तथा आख्यायिका (ऐतिहासिक इतिवृत्त)
पद्य को तीन रूपों में रखा गया प्रबन्ध, मुक्तक और कोष महाकाव्य और खण्डकाव्य प्रबन्ध के अन्तर्गत ही आते हैं।
चम्पू को भी दो रूपों में रखा गया विरुद और करभक।
(ii) दृश्य काव्य - दृश्य काव्य के अन्तर्गत दस रूपक व अट्ठारह उपरूपको को सम्मिलित किया गया।
रूपक-
1. नाटक
2. प्रकरण
3. प्रहसन
4. भाण
5. व्यायोग
6. समवकार
7. वीथीं
8. अंक
6. ईहामृग
10. डिम
उपरूपक-
1. नाटिका
2. त्रोटक
3. गोष्ठी
4. सट्टक
5. काव्य
6. नाट्यरासक
7: प्रस्थान
6. प्रेखण
8. उल्लाप्य
10. रासक
11. संलापक
13. शिल्पक
12. श्रीगदित
14. विलासिका
15. दुर्मल्लिका
17. हल्लीश
16. प्रकरणी
18. भाणिका
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